तो सुर्ख़ गुलाब की सूखी , चंद पंखुरियाँ बिखरी हुई मिलीं ,
एक-एक पंखुरी में हज़ार-हजार यादें , मुझे पुकारती हुई मिलीं ,
पंखुरियों को छुआ तो , उनके चेहरे का नर्म एहसास हुआ ,
हथेलिओं पे रखा तो , उनके चेहरे का दीदार हुआ ,
इन नम आखों में तैरती तस्वीर , उन्हीं की आज भी है ,
दिल में बसी ख़ुशबू भी , उसी सुर्ख गुलाब की आज भी है ,
जाने क्यूँ ये वक़्त रुलाता रहता है अक्सर ,
जाने क्यूँ ज़िन्दगी गुजरती जाती है तन्हा ,
हर लम्हें को इतना कस के मुट्ठी में पकड़े हूँ फिर भी ,
ये फिसलते जाते हैं , यूँ साहिलों की रेत के जैसे !! ~♥ कल्प ♥~
इन नम आखों में तैरती तस्वीर , उन्हीं की आज भी है ,
दिल में बसी ख़ुशबू भी , उसी सुर्ख गुलाब की आज भी है ,
जाने क्यूँ ये वक़्त रुलाता रहता है अक्सर ,
जाने क्यूँ ज़िन्दगी गुजरती जाती है तन्हा ,
हर लम्हें को इतना कस के मुट्ठी में पकड़े हूँ फिर भी ,
ये फिसलते जाते हैं , यूँ साहिलों की रेत के जैसे !! ~♥ कल्प ♥~
यादो का सुंदर अहसास है...
ReplyDeleteआपकी रचना में ...बहूत हि सुंदर है यह अहसास ....
ji shukriya...
Deleteयादें बस यादें ही रह जाती हैं ....भावपूर्ण अभिव्यक्ति....
ReplyDeletepallavi ji...dhanyawad...
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