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Friday, January 31, 2014

~ रूह है जो जागती है साँस लेती है सदा ~



ज़िन्दगी के हर मोड़ पर ,
वादे बदलते हैं कभी इरादे बदलते हैं ,

वक़्त की हर दहलीज़ पर ,
खुशियाँ बदलती हैं कभी तन्हाइयाँ बदलती हैं ,

घूमते -फ़िरते, भागती राहों में ,
क़दमों के निशां बदलते हैं कभी आसमां बदलते हैं ,

ये ज़िन्दगी तन्हा सफ़र है दोस्तों ,
हमसफ़र बदलते हैं कभी हमनवां बदलते हैं ,

सियाह रात ख़ामोश सोती है ,
दिन बदलते है कभी घोंसले बदलते हैं ,

सुबह उठती नहीं फिर दिन कभी ढलते नहीं ,
ये जिस्म सो जाता है ♥ कल्प ♥  
बस रूह है जो जागती है साँस लेती है सदा !!



~ ♥ कल्प वर्मा ♥ ~ 

Thursday, January 2, 2014


हर हाल में ज़िन्दगी को जीते गये ,
बीते सालों के पन्नें पलटते गये ,
ज़िन्दगी हमें , और हम , ज़िन्दगी को निहारते गये ,
आज ज़िन्दगी का एक और पन्ना पलट गया , एक और साल बीत गया ,
हम हर हाल में ज़िन्दगी को जीते गये !

खट्टे , मीठे पल , जैसे भी मिले जीते गये ,
ज़िन्दगी के हर पल हम हँसते - हँसते पीते गये ,
कुछ पल हलक़ से नीचे उतरे , कुछ अटके रहे ,
कुछ यादें समेटीं , कुछ पन्नें फाड़े गये ,
फिर भी हर हाल में हम ज़िन्दगी को जीते गये !

हजारों ख्वाहिशें बाकी हैं अभी , तमाम पन्नें ज़िन्दगी के सादे हैं ,
लेकिन जब भी ख़ाली पन्नों में कुछ लिखना चाहा ,
इनमे पहले से ही कुछ और लिखा मिला मुझे ,
ज़िन्दगी की हर तस्वीर में पहले से ही रंग भरे होते हैं ,
दिखते नहीं हैं , लेकिन शायद , ज़िन्दगी के सभी सादे पन्नें भरे होते हैं !!

~ ♥ कल्प वर्मा ♥ ~ 

Tuesday, December 24, 2013


उजली चाँदनी रात में , चाँद खो गया है कहीं ,
वो समाये हैं मुझमें कुछ ऐसे , कि मैं खो गया हूँ कहीं ,
हर सुबह उनकी भीगी ज़ुल्फें , जगाती हैं मुझे ,
और मैं हूँ कि , उनकी पलकों तले खो गया हूँ कहीं !!
 कल्प  ~

Friday, September 20, 2013

kalp verma'S ♥ KALPANA ♥: बदलों के रंग भी अजीब होते हैं ,ज़िन्दगी की तरह !...

kalp verma'S ♥ KALPANA ♥: बदलों के रंग भी अजीब होते हैं ,
ज़िन्दगी की तरह !
...
: बदलों के रंग भी अजीब होते हैं , ज़िन्दगी की तरह ! कभी बरसते हैं - भिगो जाते हैं , सावन की तरह ! कभी तन्हाई में दिखाई  नहीं देते , ...

बदलों के रंग भी अजीब होते हैं ,
ज़िन्दगी की तरह !

कभी बरसते हैं - भिगो जाते हैं ,
सावन की तरह !

कभी तन्हाई में दिखाई  नहीं देते ,
अश्कों की तरह !

हर रंग में कुछ छुपा है राज़ ,
बंद मुट्ठी में किस्मत की तरह !

कुछ " ख्व़ाब " अब भी बसे इन आखों  में " कल्प "

बचपन की तरह !!

~ ♥ कल्प ♥ ~

Friday, June 14, 2013

कुछ अधूरी सी लाइने .... कुछ अधूरे से अरमान ...
आधी - अधूरी सी ज़िन्दगी में ... ढूंढें पूरे ख़ाब ...

ज़िन्दगी ने बहुत खूबसूरत लम्हें दिए ... जीने के लिए ....
साँसे दी ...हंसी दी , ख़ुशी दी ... और साथ में कुछ ग़म भी दिए ...
वक़्त के हर उस लम्हे को हमने जकड़ के रखा ...
जहाँ ग़मो ने अपनी चादर फैला रखी थी ...
हम हर हंसी - ख़ुशी में जिए लम्हों को ...धीरे - धीरे भूलते गए ....

कभी जाग कर ... थपकियां देकर ...  रात भर ग़मो को सुलाता हूँ ...

लेकिन ... कम्बख्त ... ये वो पल हैं जो ... न तो खुद सोते हैं - और न सोने देते हैं ...
ज़िन्दगी फिर ...न चाहते हुए भी .... वहीँ ठहर जाती है ...
और फिर वक़्त कुछ रुक सा जाता है ...

~ ♥ कल्प वर्मा ♥ ~ 


Friday, April 6, 2012

रोते हुए बच्चन (CHILDREN) को आज कोई हँसावत नाही !!





कुछ अपनी बोल-चाल की भाषा में लिखने की कोशिश की है... 
दिल के कुछ अरमान निकाले हैं...ज़रा ग़ौर फ़रमाएगा...
और मेरी त्रुटियों को कृपया मुझे जरूर बताएं... 



जब तुम पास होत हौ अपने , तो हमका कौनव साथी की जरूरत नाही ,
तुम्हार नैन खुबसूरत हैं इतने , कि निगाह हमार हटत नाही !!
ज़िन्दगी की गाड़ी चलत है आपन खडामा-खडामा , कौनव बैल-गाड़ी की हमका जरूरत नाही !!
नाम हमार है "कल्प" हम अपनी धुन में रहत है मस्त , हमका कौनव "टेंशन" नाही !! 

गेहूँ के साथ पिस जात हैं घुन भी , आम-आदमी की आज इससे ज्यादा कीमत नाही ,
विज्ञान चला लगाने सीढ़ी सरग (स्वर्ग) मा , धरती पर पड़ा इंसान उनका दिखावत नाही !!
उजले कपड़े पहन के नेता चले है सब , कबहूँ अपने गिरेबान मा झांकत नाही, 
तन साफ़ करे से कबहूँ मन साफ़ न होवे , भगवान् बसत है ह्रदय मा उनका कबहूँ पूजत नाही !!

कर डालव कितनेव "घोटाला" , कोयला-सीमेंट-पत्थर कोई खावत नाही ,
बंद करो "भ्रष्टाचारियों" को देना "अनाज" , कहत आज हर किसान ,
ठूँसों "रूपया" उनके मुंह मा , देखें काहे रूपया खावत नाही !!    
जइहव एक दिन धरती माँ की शरण मा सब , या बात काहे अपने जहन मा उतारत नाही !!


अब तो लोग सबेर-सबेरे नेता-मंत्री-संत्री , की चौखट चूमत है ,
धरती माता की माटी , कोई अपने सर लगावत नाही !!
गददारन के गोड़न (LEG) मा जाके धरत है सर आपन , माँ - बाप के पैर कोई छूवत नाही !! 
बुदधी होय गयी है भ्रष्ट लोगन की , कौड़ी-कौड़ी बेचत ईमान आपन ,
रोते हुए बच्चन (CHILDREN)  को आज कोई हँसावत नाही !!    



कुछ पंक्तियाँ और जोड़ना चाहूँगा...

छोड़ घर आपन जाके बसे बिदेश मा , माँ - बाप की कबहूँ लियत खबर नाही,
एक कमरा मा पालिन जिनका , अब उनके चार (४) कामरन मा माँ-बाप का बसर नाही !!
पिछली बारिश मा गिर गयी छत घर की , लेकिन अपने लड़िकन से माँ-बाप कबहूँ बतावत नाही ,
अरे लौट आओ माँ-बाप के चरणन मा , सेवा करो उनकी , स्वर्ग यही है धरती पर और कौनव दूजा नाही !!