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Wednesday, February 8, 2012

साहिलों की रेत के जैसे !! ~♥ कल्प ♥~



बरसों बाद आज जो पल्टे पन्ने , अपनी किताबों के , 


तो सुर्ख़ गुलाब की सूखी , चंद पंखुरियाँ बिखरी हुई मिलीं ,
एक-एक पंखुरी में हज़ार-हजार यादें , मुझे पुकारती हुई मिलीं ,


पंखुरियों को छुआ तो , उनके  चेहरे का नर्म एहसास हुआ , 
हथेलिओं पे रखा तो , उनके चेहरे का दीदार हुआ ,


इन नम आखों में तैरती तस्वीर , उन्हीं की आज भी है ,
दिल में बसी ख़ुशबू भी , उसी सुर्ख गुलाब की आज भी है ,


जाने क्यूँ ये वक़्त रुलाता रहता है अक्सर ,
जाने क्यूँ ज़िन्दगी गुजरती जाती है तन्हा ,
हर लम्हें को इतना कस के मुट्ठी में पकड़े हूँ फिर भी ,
ये फिसलते जाते हैं , यूँ साहिलों की रेत के जैसे !! ~♥ कल्प ♥~


4 comments:

  1. यादो का सुंदर अहसास है...
    आपकी रचना में ...बहूत हि सुंदर है यह अहसास ....

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  2. यादें बस यादें ही रह जाती हैं ....भावपूर्ण अभिव्यक्ति....

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