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Thursday, March 15, 2012

जैसे पूरी दुनियाँ हो घर में !! ~♥ कल्प ♥~



एक तन्हा आँगन है , सूनी छत है ,
एक मैं हूँ , और सारा आकाश है ,
मिट्टी के घर हैं ,
आधी - अधूरी कुछ दीवारें हैं ,
नन्हें हाथों को तरसते ताख़ पे रखे कुछ खिलौने हैं ,
जाने किस आँधी में उजड़ गयी है दुनिया घर की !!


एक तन्हा आँगन है , सूनी छत है ,
एक मैं हूँ , और सारा आकाश है ,
चाँद छुप गया है बादल में ,
चिराग की लौ भी डोलने लगी है अब , जलते - जलते ,
सारे नज़ारे गहरी नींद की आगोश में हैं ,
जाने किस शून्य में खो गयी है दुनिया घर की !!


एक तन्हा आँगन है , सूनी छत है ,
एक मैं हूँ , और सारा आकाश है ,
दूर हुए अपने सारे करीब लगते हैं ,
यूँ सितारों के आँगन से जैसे मुझे बुलाता है कोई ,
बादलों पे चलकर , कभी हवाओं को पकड़कर ,
जाने कब चाँद के दामन में सर रखके सो जाता हूँ मैं ,
फिर बीत गयी रात ग़म की , अब तो सुबह हुई है खुशियों की !!


चहकने लगे हैं पंछी सारे , मंद - मंद हवा है बहती ,
छम - छम करती पायल बजती , मुस्कान - ठिठोली गूँजती आँगन में ,
जी उठा हो अब ये घर जैसे , साँस लेती दीवारें हैं ,
अब ये तन्हा आँगन तन्हा नहीं , छत भी सूनी नहीं लगती ,
दिल के दरवाजे पे दस्तक है प्यार की , ज़िन्दगी खड़ी है चौखट पे ,
अब तो यहीं है बाँहों में , दुनिया मेरी ,
अब ये घर केवल घर नहीं , जैसे पूरी दुनियां हो घर में !!  ~♥ कल्प ♥~

3 comments:

  1. बहुत ही सुंदर भाव संयोजन से सुसजित सुंदर रचना....

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