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Friday, April 6, 2012

रोते हुए बच्चन (CHILDREN) को आज कोई हँसावत नाही !!





कुछ अपनी बोल-चाल की भाषा में लिखने की कोशिश की है... 
दिल के कुछ अरमान निकाले हैं...ज़रा ग़ौर फ़रमाएगा...
और मेरी त्रुटियों को कृपया मुझे जरूर बताएं... 



जब तुम पास होत हौ अपने , तो हमका कौनव साथी की जरूरत नाही ,
तुम्हार नैन खुबसूरत हैं इतने , कि निगाह हमार हटत नाही !!
ज़िन्दगी की गाड़ी चलत है आपन खडामा-खडामा , कौनव बैल-गाड़ी की हमका जरूरत नाही !!
नाम हमार है "कल्प" हम अपनी धुन में रहत है मस्त , हमका कौनव "टेंशन" नाही !! 

गेहूँ के साथ पिस जात हैं घुन भी , आम-आदमी की आज इससे ज्यादा कीमत नाही ,
विज्ञान चला लगाने सीढ़ी सरग (स्वर्ग) मा , धरती पर पड़ा इंसान उनका दिखावत नाही !!
उजले कपड़े पहन के नेता चले है सब , कबहूँ अपने गिरेबान मा झांकत नाही, 
तन साफ़ करे से कबहूँ मन साफ़ न होवे , भगवान् बसत है ह्रदय मा उनका कबहूँ पूजत नाही !!

कर डालव कितनेव "घोटाला" , कोयला-सीमेंट-पत्थर कोई खावत नाही ,
बंद करो "भ्रष्टाचारियों" को देना "अनाज" , कहत आज हर किसान ,
ठूँसों "रूपया" उनके मुंह मा , देखें काहे रूपया खावत नाही !!    
जइहव एक दिन धरती माँ की शरण मा सब , या बात काहे अपने जहन मा उतारत नाही !!


अब तो लोग सबेर-सबेरे नेता-मंत्री-संत्री , की चौखट चूमत है ,
धरती माता की माटी , कोई अपने सर लगावत नाही !!
गददारन के गोड़न (LEG) मा जाके धरत है सर आपन , माँ - बाप के पैर कोई छूवत नाही !! 
बुदधी होय गयी है भ्रष्ट लोगन की , कौड़ी-कौड़ी बेचत ईमान आपन ,
रोते हुए बच्चन (CHILDREN)  को आज कोई हँसावत नाही !!    



कुछ पंक्तियाँ और जोड़ना चाहूँगा...

छोड़ घर आपन जाके बसे बिदेश मा , माँ - बाप की कबहूँ लियत खबर नाही,
एक कमरा मा पालिन जिनका , अब उनके चार (४) कामरन मा माँ-बाप का बसर नाही !!
पिछली बारिश मा गिर गयी छत घर की , लेकिन अपने लड़िकन से माँ-बाप कबहूँ बतावत नाही ,
अरे लौट आओ माँ-बाप के चरणन मा , सेवा करो उनकी , स्वर्ग यही है धरती पर और कौनव दूजा नाही !!

  

3 comments:

  1. सुन्दर कोमल भावों से सुसज्जित बेहतरीन प्रस्तुति

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  2. पहली छणिका में किसी की नजरो का जादू भी चल गया
    दूसरी में नीतो की खिचाई भी हो गयी...
    फिर बच्चो को भी हँसा लिया
    और अंत में देशी माता पिता विदेशी बेटे की कहानी भी खूब कह दी....
    बहुत ही बढ़िया लगा ये अंदाज..
    एक रचना में कई सारे पहलू..
    बेहतरीन रचना...

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  3. hahahahah...reena ji yahi to mujhe samajh nahi aata hai...kahan se shuru karta hun..aur kahan khatam ho jata hai....shukriya...

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