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Wednesday, February 1, 2012

~♥ कल्प ♥~ की "रूह" नहीं मिलती




बीते हर लम्हें में , एक तेरा ही इंतज़ार रहा है ,


यूँ हर रात को जैसे , एक भोर का इंतज़ार रहा है ,


वक़्त थमा नहीं कभी , और मैं भी रुका नहीं हूँ अभी ,


फिर भी न जाने क्यूँ , 


अब पाओं के नीचे जमीं नहीं मिलती ,


चलती हुई साँसों को कोई डोर नहीं मिलती ,


दिल तो धड़कता है पर एहसास नहीं है ,


न जाने क्या हुआ है अब ,


इस जिस्म को जैसे ~♥ कल्प ♥~ की "रूह" नहीं मिलती !!





5 comments:

  1. क्या यही प्यार है ...बहुत खूब लिखा है आपने समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/

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    1. ji shukriya ...main jaroor read karunga...dhanyawad...

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  2. एहसास बना रहे तो ...जिस्म को रूह भी मिल जायेगी ....

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    1. kya baat kahi hai aapne...hausla afzayi ka shukriya...

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  3. भोर के इंतज़ार का ये तरीका बेहद खूबसूरत...उम्दा भाव

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