खुद को पास बुला के , बैठो कभी तन्हाई में ,
बिन बोले दो-बात कहो ,
फिर दिल की आवाज़ सुनो कभी तन्हाई में ,
किसे पाया , किसको खोया ,
कौन है आस-पास , फिर देखो दूर तक कभी वीराने में ,
किसे हंसाया , किसको रुलाया ,
किसका दिल दुखाया , कभी अनजाने में !!
खुद को पास बुला के , बैठो कभी तन्हाई में !!
किसे अपनाया , किसको ठुकराया ,
उनको भी झाँक के देखो , कभी दिल की गहराई में ,
किसे बनाया , किसको बिगाड़ा ,
अब तो जागो प्यारे , कब से सो रहे उजियारे में !!
खुद को पास बुला के , बैठो कभी तन्हाई में !!
अपनों को तो हम भूल गए , गैरों की क्या बात कहें ,
चलो अच्छे कुछ काम करें अब , बाकी बची जिंदगानी में ,
भूखे - प्यासे की आग बुझायें , दीन - दुखी को गले लगायें ,
आओ साथ चलें मिलकर हम , केवल बात न करें अब ज़ुबानी में !!
खुद को पास बुला के , बैठो कभी तन्हाई में !!
ठहरे - जमे हुए पलों ने बहुत रुलाया है ,
दिल के आईने में भी अब तो , खुद का चेहरा धुंधलाया है ,
ये जिस्म ही नहीं , एक मुकम्मल " रूह " है ~♥ कल्प ♥~
जाने कब से जाग रही - भटक रही है , खुद को खुद से मिलाने में ,
अब डूबने दो - उबरने दो जरा मुझे , " कल्प " को तलाशने में !!
खुद को पास बुला के , बैठो कभी तन्हाई में !! ~♥ कल्प ♥~