ज़िन्दगी ने मुझे क्या दिया , या ,
मैंने ज़िन्दगी को क्या दिया
इसी उधेड़बुन में बैठा हूँ मैं ,
मैंने कदम नहीं बढ़ाये , या ,
मज़िल कहीं दूर थी मेरी , पता नहीं ,
वक़्त ने साथ नहीं दिया , या ,
किस्मत कहीं नाराज़ थी मुझसे , पता नहीं ,
हर - सू में तेरा चेहरा नज़र आता था मुझे ,
हर ख्व़ाब तेरे पहलू से बाँध रखे थे मैंने ,
नींद नहीं आई मुझे , या
फिर शब् नहीं ढली कभी , पता नहीं ,
खुशियाँ खेलती , ज़िन्दगी नाचती थी कभी ,
हर लम्हें में हंसी गूंजती थी आँगन में ,
किसी कि नज़र लगी , या ,
खुदा को यही मंज़ूर था , पता नहीं ,
आईने में कभी-कभी खुद से पूछता हूँ मैं ,
कि कौन है ये शक्श ~♥ कल्प ♥~ जिसकी " रूह " तो दिखती है मुझे ,
लेकिन , जिस्म " सो " रहा है कहाँ , पता नहीं !!
Nice one mere azeez.
ReplyDeleteJism so to raha hai magar har sheh ki khabar hai,
rooh bezaar hai,jism khaali,armaa taar-taar,
lete to hain hum kabra me,par dil ko teri dhadkan ki khabar hai,
shukriya ji..
Deletebahut sundar panktiya hai...
ReplyDeletesundar rachana...
shukriya reena ji...
Deleteसुंदर रचना....
ReplyDeleteshukriya monika ji..
DeleteReally very niceeeeee
ReplyDeleteshukriya sir...
Deleteshukriya sanjay ji...
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