कुछ लोग सितम करने को तय्यार बैठे है
कुछ लोग मगर हम पे दिल हार बैठे हैं
इस कशमकश में पहचाने नहीं जाते
कहाँ दुश्मन और कहाँ दोस्त, यार बैठे हैं
इश्क को आग का दरिया ही समझ लीजिये हज़ूर !
कोई इस पार, तो कोई उस पार बैठे हैं
कौन कहता है, कि इस शहर में सारे है बेवफ़ा
हमारे सामने वफ़ादार, दो चार बैठे हैं
कल तक जिन्हें हसरत थी हमें बर्बाद करने की
आज वही लोग, अपने किये पे शर्मसार बैठे हैं
दुनिया से रूठ जाने की खवाहिश है हमारी
क्या करूँ, इस ख़वाहिश पे भी पहरेदार बैठे हैं !!
कुछ लोग मगर हम पे दिल हार बैठे हैं
इस कशमकश में पहचाने नहीं जाते
कहाँ दुश्मन और कहाँ दोस्त, यार बैठे हैं
इश्क को आग का दरिया ही समझ लीजिये हज़ूर !
कोई इस पार, तो कोई उस पार बैठे हैं
कौन कहता है, कि इस शहर में सारे है बेवफ़ा
हमारे सामने वफ़ादार, दो चार बैठे हैं
कल तक जिन्हें हसरत थी हमें बर्बाद करने की
आज वही लोग, अपने किये पे शर्मसार बैठे हैं
दुनिया से रूठ जाने की खवाहिश है हमारी
क्या करूँ, इस ख़वाहिश पे भी पहरेदार बैठे हैं !!
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeletesundar prastuti.....
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