ज़रा पाने की चाहत में
ज़रा पाने की चाहत में
बहुत कुछ छूट जाता है
न जाने सबर का धागा
कहाँ पर टूट जाता है
किसे हमराह कहते हो
यहाँ तो अपना साया भी
कहीं पर साथ रहता है
कहीं पर छूट जाता है
अजब से है ये रिश्ता भी
बहुत मज़बूत लगता है
ज़रा सी भूल से लेकिन
भरोसा टूट जाता है
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